मुद्रास्फीति ने बढ़ाया आर्थिक संकट
दो माह में सब्जियों की महंगाई दर दो गुना बढ़ जाना आम आदमी के लिए बुरी खबर है । खाद्य पदार्थों और सब्जी की कीमतों में बढ़ोतरी तो बीते छह महीनों से जारी थी, फिर भी सब्जियों की महंगाई दर सितंबर की 3.92 फीसदी के मुकाबले आज साढ़े सात फीसद तक पहुंच चुकी है। प्याज और टमाटर तो गरीबों की पहुंच से बाहर हो चुके हैं। ये मुद्रास्फीति आर्थिक नियमन पर गहराते बादलों के संकेत भी। अब उपभोक्ता मुद्रास्फीति अक्तूबर में सात महीने की ऊँचाई पर पहुंच गई, जबकि खाद्य और ईंधन की बढ़ती कीमतों की वजह से थोक मुद्रास्फीति छह महीने के उच्च स्तर पर थी।
मुद्रास्फीति अर्थव्यवस्था के नीति-नियंताओं के लिए चिंता का एक कारण है जो नोटबंदी और जीएसटी के क्रियान्वयन की विसंगतियों से जूझ रहे हैं। जून तिमाही में सामने आए मुद्रा संकट ने अनौपचारिक अर्थव्यवस्था को मुश्किल में डाल दिया, और विकास की रफ्तार तीन साल के न्यूनतम स्तर तक पहुंच गई। हाल के औद्योगिक उत्पादन आंकड़े निराशाजनक हैं। संकेत हैं कि आर्थिक स्थिति में सुधार की उम्मीद अभी भी दूर की कौड़ी है क्योंकि अर्थव्यवस्था के स्पीड ब्रेकरों ने उत्पादन की गाड़ी को फिर धीमा कर दिया। टैक्स दरों में अनिश्चितता और जीएसटी के बदलते नियमों ने उद्योग व्यापार का भट्टा बैठाया है।
दरअसल, बढ़ती मुद्रास्फीति ने सुधार की उम्मीदों पर फिर से पानी फेरने वाला काम किया है। रिजर्व बैंक की कोशिश रहती है कि मुद्रास्फीति 4 फीसदी से कम रहे ताकि वह आर्थिक सुधारों के बाबत कदम उठा सके। मौजूदा मुद्रास्फीति की हालत में आरबीआई से भी तत्काल किसी राहत घोषणा करने की संभावना नहीं दिख रही है। दिल्ली दरबार के अलंबरदारों के लिए आने वाले दिन और मुश्किल भरेे नजर आ रहे हैं। देश की वह जमापूंजी तेजी से छीजती जा रही है जो उसने दुनिया भर में छाई कच्चे तेल की मंदी से कमाई थी। अब तो पेट्रोलियम कीमतों में तेजी का रुख है।
तेल उत्पादक (ओपेक) देशों ने अंतर्राष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतों में बढ़ोतरी का जो फैसला किया है वह दीर्घकालिक होने की संभावना है। सरकार पेट्रोल और डीजल की कीमतों में इजाफा करने की स्थिति में नहीं है, इसलिए इसे और अधिक उधार लेने के लिए राजकोषीय घाटे के लक्ष्य के पूरा होने की उम्मीद छोडऩी पड़ सकती है। इस स्थिति में, वित्त मंत्री अरुण जेटली को किस्तों में जीएसटी सुधार की नीति को छोड़ देना चाहिए। उन्हें जल्द ही एक स्थिर और निवेशक-अनुकूल कराधान व्यवस्था बनाने पर ध्यान देना चाहिए।